Indira Ekadashi 2023, Pitru Paksha: सीहोर वाले गुरु जी ने बताया इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व, जानिए पितरों को मोक्ष दिलाने वाले व्रत का शुभ मुहूर्त और तिथि। भारतीय संस्कृति में धार्मिक और पारंपरिक में व्रत का महत्व हमेशा ही उच्च माना गया है। इन व्रतों का उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति करना, दिव्य शक्तियों के प्राप्ति का माध्यम बनना और समाज में सद्गुण प्रसारित करना होता है। एकादशी एक ऐसा व्रत है जिसका महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक है, और इसके विभिन्न प्रकार के एकादशी व्रत हर महीने मनाए जाते हैं। इस ब्लॉग में “इंदिरा एकादशी” व्रत के महत्व, इसका शुभ मुहूर्त, और तिथि के बारे में जानकारी देंगे, जैसे कि सीहोर वाले गुरु जी पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया है।
इंदिरा एकादशी का महत्व और शुभ मुहूर्त
एकादशी व्रत का महत्व हिन्दू धर्म में अत्यधिक है, और इसका पालन भक्तों को आध्यात्मिक और शारीरिक तौर पर लाभ पहुँचाता है। “इंदिरा एकादशी” एक खास एकादशी है जिसे विशेष महत्व दिया जाता है। इसे पितृपक्ष के अंत में मनाया जाता है, और इसका मुख्य उद्देश्य पितरों को मोक्ष दिलाना है। इंदिरा एकादशी का व्रत पितृपक्ष के अंत में मनाया जाता है, जब पितरों की पूजा और तर्पण करने का समय होता है। इस दिन व्रत की शुरुआत सूर्योदय के बाद की जाती है और व्रत की समाप्ति सूर्यास्त के बाद होती है। अश्विन कृष्ण पक्ष की ग्यारही तिथि 9 अक्टूबर 2023 को दोपहर 12.36 पर प्रारंभ होकर, और समाप्त होकर 10 अक्टूबर 2023 को दोपहर 03.08 पर होगी।
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Indira Ekadashi व्रत की तिथि
इंदिरा एकादशी का व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस व्रत को “परिवर्तिनी एकादशी” भी कहा जाता है। Indira Ekadashi व्रत का महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और यमराज की पूजा का महत्व अत्यधिक होता है, और इसके माध्यम से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। विष्णु पूजा का समय – 09. 13 सुबह से लेकर 12.08 दोपहर तक (10 अक्टूबर 2023) इंदिरा एकादशी व्रत पारण समय – 06.19 सुबह से लेकर 08.39 सुबह तक (11 अक्टूबर 2023)
इंदिरा एकादशी व्रत का विधान
इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) व्रत का पालन करते समय विशेष ध्यान देना चाहिए। इस दिन व्रती को नींदा और अहिंसा के नियमों का पालन करना चाहिए। व्रती को सवेरे उठकर निर्जला व्रत आरम्भ करना चाहिए, जिसमें खाने पीने का त्याग करना होता है। व्रती को इस दिन (Indira Ekadashi) तुलसी के पत्तों के साथ भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और पितरों को यज्ञदान करना चाहिए। इसके बाद, व्रती को सूर्यास्त के बाद व्रत तोड़ना चाहिए।
इस एकादशी व्रत को करने के लाभ
- पितरों को मोक्ष: इंदिरा एकादशी व्रत का मुख्य उद्देश्य पितरों को मोक्ष प्राप्त करने में मदद करना है। इसके माध्यम से व्रती अपने पूर्वजों को शांति दिला सकते हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति: इस व्रत का पालन करने से व्रती अपने आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं। यह व्रत भक्तों को आत्मा की शुद्धि और साक्षरता की दिशा में मदद करता है।
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: निर्जला व्रत करने से शारीरिक स्वास्थ्य पर भी लाभ होता है। यह व्रत मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है और मन को शांति प्रदान करता है।
इंदिरा एकादशी व्रत की पावन कथा
“इंदिरा एकादशी” व्रत हिन्दू धर्म में पितरों की आत्मा को शांति दिलाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। सीहोर वाले गुरु जी ने इस व्रत का महत्व बताया है और इसे पालन करने के उपयुक्त मुहूर्त और तिथि की जानकारी दी है। यदि आप इस व्रत का पालन करने का निर्णय लेते हैं, तो ध्यानपूर्वक और भक्ति भावना से इसे मनाएं, ताकि आपको आध्यात्मिक और शारीरिक लाभ प्राप्त हो सके। सतयुग में, महिष्मती नामक नगर में, एक प्रख्यात राजा जिनका नाम इंद्रसेन था, राज्य करते थे। वह एक पुत्र, पौत्र, धन, और धान्य से युक्त थे, और उनके शत्रु हमेशा उनसे डरते रहते थे।
नारद जी ने सुनाई Indira Ekadashi की कथा
एक दिन, नारद मुनि राजा इंद्रसेन के पास आए और उनके पिता की मृत्यु का संदेश लाए। नारद जी ने Indira Ekadashi की कथा कहते हुए बताया कि कुछ दिन पहले, जब वह यमलोक गए थे, तो उन्होंने राजा के पिता से मिलकर देखा कि उन्हें अब तक मुक्ति नहीं मिली है क्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में एकादशी व्रत का पालन नहीं किया था, और वे अब भी यमलोक में बंद हैं। राजा इंद्रसेन ने अपने पिता की इस दुखद स्थिति को सुनकर बहुत दुखी हुए और उन्होंने नारद जी से पिता की मुक्ति प्राप्त करने के उपाय के बारे में पूछा।
इंद्रा एकादशी व्रत से पित्रों को मिली मुक्ति
नारद जी ने राजा को यमलोक से मुक्ति पाने के लिए इंदिरा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी, जिससे पिता सभी दोषों से मुक्त होकर स्वर्ग जाएंगे और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। राजा इंद्रसेन ने नारद जी के द्वारा दिए गए Indira Ekadashi व्रत की विधि का पालन किया, और इंदिरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की, पितरों के लिए श्राद्ध किया, ब्राह्मणों को भोजन दिया। इसके परिणामस्वरूप, राजा के पिता को स्वर्ग प्राप्त हुआ, और इंद्रसेन भी अपने अंत के बाद मोक्ष को प्राप्त हुए।