Court MARRIAGE: कोर्ट मैरिज करने वालों हो जाओ सावधान! शादी से पहले जान लो ‘स्पेशल मैरिज एक्ट 1954’ से जुड़े ये 10 नियम

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Court MARRIAGE: कोर्ट मैरिज करने वालों हो जाओ सावधान! शादी से पहले जान लो 'स्पेशल मैरिज एक्ट 1954' से जुड़े ये 10 नियम
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Court MARRIAGE: कोर्ट मैरिज करने वालों हो जाओ सावधान! शादी से पहले जान लो ‘स्पेशल मैरिज एक्ट 1954’ से जुड़े ये 10 नियम। बॉलीवुड के ‘सर्किट’ अरशद वारसी हाल ही में चर्चाओं का विषय बने हुए हैं। इसका कारण है उनकी 25 साल बाद शादी को कोर्ट में रजिस्टर कराने की घटना। 1999 में मारिया के साथ शादी करने के बाद, अब उन्होंने इसे कानूनी तौर पर पुनः प्रमाणित किया है। अरशद वारसी से जब पूछा गया कि इस कदर लंबे समय बाद क्यों शादी को रजिस्टर कराया, तो उन्होंने कहा कि यह कानूनी जिम्मेदारी के लिए किया गया है।

इस प्रकार के काम के लिए पहले कभी ध्यान नहीं दिया गया था। जब भी संपत्ति खरीदने या किसी की मौत होने की स्थिति आती है, तो कानूनी प्रमाण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस विशेष घटना में आप जानेंगे कि शादी के बाद कोर्ट में रजिस्ट्रेशन क्यों आवश्यक होता है, Court MARRIAGE के नियम, समलैंगिक या विदेशी जोड़ों के लिए Court MARRIAGE के अधिकार, खर्च, और उत्तराखंड में UCC के लागू होने के बाद क्या बदलाव आए हैं।

Court MARRIAGE: कोर्ट मैरिज करने वालों हो जाओ सावधान! शादी से पहले जान लो 'स्पेशल मैरिज एक्ट 1954' से जुड़े ये 10 नियम

विवाह प्रमाणपत्र कितना महत्वपूर्ण है?

विवाह प्रमाणपत्र यह साबित करता है कि आपकी शादी कानूनी रूप से पंजीकृत है। इस प्रमाणपत्र की आवश्यकता कई स्थितियों में होती है, जैसे कि पासपोर्ट प्राप्त करने, संयुक्त बैंक खाता खोलने, जीवन बीमा नीति प्राप्त करने या अपना उपनाम बदलने इत्यादि। 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया था।

कोर्ट विवाह कैसे होता है?

भारत में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। पारंपरिक विवाह के अलावा, भारत में कोर्ट विवाह का भी विकल्प है जो समाजिक समारोह या खर्च से बचने की इच्छा रखने वालों या समाजिक स्वीकृति नहीं मिलने वाले लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। किसी भी धर्म, जाति या वर्ग के लड़का और लड़की कोर्ट में जाकर शादी कर सकते हैं। इसमें किसी भी धार्मिक रीति-रिवाज की आवश्यकता नहीं होती है। कोर्ट में, विवाह अधिकारी के सामने, सभी आवश्यक दस्तावेज़ जमा कराए जाने के बाद, लड़का और लड़की को केवल हस्ताक्षर करना होता है।

Court MARRIAGE: कोर्ट मैरिज करने वालों हो जाओ सावधान! शादी से पहले जान लो 'स्पेशल मैरिज एक्ट 1954' से जुड़े ये 10 नियम

क्या कहते है Court MARRIAGE के नियम

इसके बाद, वे आधिकारिक रूप से पति-पत्नी माने जाते हैं। भारत में Court MARRIAGE की नियमावली विशेष विवाह अधिनियम-1954 के अनुसार, Court MARRIAGE के लिए लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़के की 21 वर्ष होनी चाहिए। दोनों को मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। किसी भी पक्ष का शादीशुदा नहीं होना चाहिए। शादी के लिए दोनों की सहमति आवश्यक है। दोनों पक्षों के बीच संबंध नहीं होने चाहिए। नियमों के उल्लंघन पर कठोर कार्रवाई की जा सकती है। Court MARRIAGE के लिए पहले ऑफ़लाइन या ऑनलाइन फॉर्म भरना होता है।

फॉर्म के साथ सभी आवश्यक दस्तावेज भी जमा करने होते हैं। इन दस्तावेजों में- दोनों का आधार कार्ड, दोनों की 10वीं और 12वीं की मार्कशीट, 5-5 पासपोर्ट साइज फोटो, निवास प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, तलाक का सर्टिफिकेट यदि है तो, विधवा है तो पहले पति का मृत्यु सर्टिफिकेट। ऑफ़लाइन सत्यापन के लिए मूल दस्तावेजों के साथ दस्तावेजों की प्रतिलिपि ले जाना होता है। घोषणा पत्र में क्या लिखा होता है ऑनलाइन आवेदन के बाद 30 दिन का नोटिस पीरियड दिया जाता है। सभी दस्तावेजों के सत्यापन के बाद कोर्ट में शादी की तारीख मिल जाती है।

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Court MARRIAGE: कोर्ट मैरिज करने वालों हो जाओ सावधान! शादी से पहले जान लो 'स्पेशल मैरिज एक्ट 1954' से जुड़े ये 10 नियम

इस तरह होती है Court MARRIAGE

निर्धारित दिन पर लड़का-लड़की को दो-तीन गवाहों के साथ रजिस्ट्रार के सामने उपस्थित होना होता है। दूल्हा-दुल्हन और गवाहों को रजिस्ट्रार के सामने एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने होते हैं। घोषणा पत्र में लिखा होता है कि यह शादी बिना किसी दबाव के उनकी स्वेच्छा से हो रही है। उसी दिन प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाता है। इसके लिए किसी वकील की आवश्यकता नहीं होती है। गवाह के रूप में लड़का या लड़की पक्ष से कोई भी उनके दोस्त या पारिवारिक सदस्य हो सकते हैं। मुस्लिम विवाह अधिनियम के अनुसार, गवाह केवल पुरुष ही हो सकते हैं।

भारत में Court MARRIAGE के नियम इस प्रकार हैं:

  • स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 के अनुसार, Court MARRIAGE के लिए लड़की की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़के की 21 वर्ष होनी चाहिए।
  • दोनों को मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है और किसी भी पक्ष का शादीशुदा नहीं होना चाहिए।
  • वे दोनों को शादी के लिए सहमत होना चाहिए और किसी भी पक्ष का दूसरे पक्ष के साथ संबंध नहीं होना चाहिए। नियमों का उल्लंघन करने पर सख्त कार्रवाई हो सकती है।
  • कोर्ट मैरिज के लिए, पहले आपको ऑफलाइन या ऑनलाइन फॉर्म भरकर आवेदन करना होता है, जिसमें सभी आवश्यक दस्तावेज भी समेत होते हैं।
  • इनमें शामिल होते हैं – आधार कार्ड, शिक्षा प्रमाणपत्र, पासपोर्ट आकार की फोटो, निवास प्रमाणपत्र, जन्म प्रमाणपत्र, तलाक का प्रमाणपत्र या विधवा होने पर पहले पति का मृत्यु प्रमाणपत्र।
  • ऑफलाइन सत्यापन के लिए, मूल दस्तावेजों के साथ उनकी प्रति की फोटोकॉपी के दो सेट लाना आवश्यक होता है।
Court MARRIAGE: कोर्ट मैरिज करने वालों हो जाओ सावधान! शादी से पहले जान लो 'स्पेशल मैरिज एक्ट 1954' से जुड़े ये 10 नियम
  • घोषणा पत्र में यह लिखा होता है कि शादी बिना किसी दबाव के उनकी खुद की इच्छा से हो रही है।
  • कोर्ट मैरिज के लिए, आपको अपने जिले के Court MARRIAGE कार्यालय जाना होगा, जहाँ कुछ राज्यों में विशेष कोर्ट मैरिज कार्यालय भी होते हैं।
  • तत्काल Court MARRIAGE संभव है, जिसकी प्रक्रिया और फीस अलग-अलग हो सकती है।
  • माता-पिता की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती है, बस शर्त है कि निर्धारित नियमों का पालन किया जाए।
  • फीस की राशि का निर्धारण धर्म, नागरिकता, शादीशुदा होने की स्थिति, धर्म समान होने या अलग होने, और शादी के कानून के आधार पर किया जाता है। न्यूनतम फीस 1000 रुपये है।
  • विदेशी या एनआरआई के साथ भारत में Court MARRIAGE संभव है, जिसमें तत्काल फीस का भुगतान करने के बाद सर्टिफिकेट प्राप्त किया जा सकता है।

दूसरे धर्म में Court MARRIAGE के क्या है नियम

दूसरे धर्म में Court MARRIAGE करने के नियमों के तहत, स्पेशल मैरिज एक्ट के अंतर्गत, किसी भी धर्म से एक व्यक्ति दूसरे धर्म के व्यक्ति से कोर्ट में शादी कर सकता है। इसमें यह विभाजन होता है कि शादी के आवेदन के बाद कम से कम 30 दिन का इंतजार किया जाना चाहिए। यदि किसी को इस विवाद से कोई आपत्ति है, तो उन्हें शिकायत करने का अधिकार है। अगर उन 30 दिनों के अंदर कोई आपत्ति नहीं होती, तो फीस देकर शादी की जा सकती है।

कोर्ट मैरिज का प्रमाण पत्र घर तक नहीं भेजा जाता, बल्कि यह रजिस्ट्रार कार्यालय में जारी किया जाता है। दोनों पक्षों के लिए पुलिस सुरक्षा का विकल्प भी होता है, यदि वे इसे चाहें, लेकिन यह सुरक्षा केवल प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद ही दी जाती है।

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क्या समलैंगिकों को Court MARRIAGE का अधिकार है?

समलैंगिकों को विवाह करने का कानूनी अधिकार नहीं है. पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह की मान्यता को इनकार किया था। हालांकि, कोर्ट ने यह भी उजागर किया है कि किसी को भी अपने जीवन साथी का चयन करने का पूरा अधिकार है। यह उनका मौलिक अधिकार है। लेकिन, स्पेशल मैरिज एक्ट में परिवर्तन करना संसद का काम है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि समलैंगिक जोड़ों के साथ भेदभाव न किया जाए।

उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड के बाद क्या कोर्ट मैरिज के नियम बदले हैं?

हालांकि, समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग अब भी जारी है। कई सामाजिक कार्यकर्ता और एलजीबीटी कम्युनिटी के सदस्य इस निर्णय के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और समानता और न्याय की मांग कर रहे हैं। उत्तराखंड की विधानसभा ने यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल को मंजूरी दे दी है। यह मतलब समान नागरिक संहिता है। उत्तराखंड में अब सभी धर्मों और समुदाओं के लिए कानून एकसार होगा। इससे Court MARRIAGE के नियमों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होगा। यहाँ तक कि कोर्ट मैरिज के नियम पहले से ही सभी धर्मों के लोगों के लिए समान हैं।

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