Citizenship (Amendment) Act 2019: भारतीय नागरिकता (संशोधन) अधिनियम ने पाँच वर्ष पहले संसद से मंजूरी प्राप्त कर ली थी, हालांकि, इसका अब तक देशभर में प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया है क्योंकि विभिन्न स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हो रहा है। इस कानून पर अब एक बार फिर विवाद है।इसका कारण है मतुआ समुदाय के बीजेपी नेता और केंद्रीय राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर का एक दावा। शांतनु ठाकुर, जो बंगाल से बीजेपी सांसद हैं, ने यह दावा किया है कि इस कानून को सात दिनों के भीतर पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा।
27 दिसंबर को उनके बंगाल दौरे के दौरान, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसे लेकर सुनिश्चितता जताई थी, कहते हुए कि कोई भी इसकी रोकथाम नहीं कर सकेगा। इस विशेष रिपोर्ट में आपको समझाया जाएगा कि नागरिकता संशोधन कानून का मतलब क्या है, और इसे चुनाव से पहले क्यों लागू करने का ऐलान किया गया, किन-किन राज्यों में इसका प्रभाव होगा, इसमें मुसलमानों के लिए क्यों है महत्वपूर्ण पहलू, और इसके खिलाफ क्या राय है। हर बड़े सवाल का उत्तर यहां मिलेगा। 2019 में भारत सरकार द्वारा पारित नागरिकता (संशोधन) अधिनियम एक विवादास्पद क़ानून है, जिसका अधिकारिक नाम ‘नागरिकता संशोधन क़ानून 2019’ है।
क्या है Citizenship (Amendment) Act 2019
इस अधिनियम के अनुसार, 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई, और पारसी धर्म के अनुयायियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी। इसका अर्थ है कि इस क़ानून के तहत, 2014 तक उकसाया हुआ किसी भी प्रकार का उत्पीड़न झेलने के बाद भारत आने वाले उन लोगों को भी भारतीय नागरिकता प्राप्त होगी, जो की इन तीनों देशों के नागरिक हैं। हालांकि, इस प्रावधान के तहत मुस्लिम समुदाय को बाहर रखा गया है, जिससे कुछ विवाद उत्पन्न हो रहे हैं। इस क़ानून के अनुसार, तीनों देशों से आए विस्थापित लोगों को नागरिकता प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार के दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होगी।
चुनाव से पहले ही CAA को लागू करने का ऐलान क्यों?
इसके अलावा, क़ानून के अनुसार, इन अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्राप्त होने पर मौलिक अधिकार भी सुनिश्चित होंगे। लोकसभा चुनाव में लगभग तीन महीने की बचत है। फरवरी के अंत या मार्च के शुरुआत में चुनाव की तारीख की घोषणा होगी। पहले अमित शाह और अब केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने दोनों ही बंगाल के चुनाव सभाओं में ही देशभर में CAA को लागू करने की बात की है। पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए CAA को लागू करने का वादा एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था। बीजेपी का कहना है कि CAA हिंदू राष्ट्रवाद के उनके एजेंडे को आगे बढ़ा सकता है।
हिंदू वोटर्स को उनकी पार्टी की ओर आकर्षित कर सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां पहले से ही बड़ी हिंदू आबादी है। बीजेपी CAA को देश की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक कदम के रूप में पेश कर रही है। इस रूप में, बीजेपी खुद को मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही है। हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि CAA मुस्लिम विरोधी है और भारतीय संविधान के समानता के नियमों का उल्लंघन करता है, और इस प्रकार बीजेपी विपक्ष को CAA को मुस्लिम तुष्टीकरण के रूप में पेश करने का आरोप लगा सकती है, जो उसके हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को मजबूत कर सकता है।
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक नेतृत्व की कोशिश में, बीजेपी ने बांग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के हिंदू शरणार्थियों के साथ बड़ी प्रयास की है। यह समुदाय बहुत समय से नागरिकता की मांग कर रहा है, और इसकी आबादी संगीनी है। इन लोगों को बांग्लादेश से आने के कारण सीएए का लाभ हो सकता है, जिससे उन्हें नागरिकता प्राप्त हो सकती है। बीजेपी ने 2024 चुनाव में मतुआ समुदाय को अपने साथ मजबूत करके अपनी सियासी निर्माण की कोशिश की है। 2019 लोकसभा चुनाव और 2021 बंगाल विधानसभा चुनाव में, बीजेपी ने मतुआ समुदाय पर ध्यान केंद्रित करके महत्वपूर्ण जीतें हासिल की थीं।
2014 में, बंगाल में बीजेपी को केवल दो लोकसभा सीटें थीं, जो 2019 में 18 में बढ़ गईं, और 2021 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दूसरे स्थान पर उभरी थी। इस बढ़ती हुई जनसंख्या के पीछे, मतुआ समुदाय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले, बीजेपी ने एक बार फिर से सीएए का समर्थन प्राप्त करने के लिए प्रयास किया है। यह सीएए बीजेपी के लिए बंगाल में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि लोकसभा सीटों की संख्या के आधार पर बंगाल (42) यूपी (80) और महाराष्ट्र (48) के बाद तीसरा सबसे बड़ा राज्य है।