JYOTIRADITYA SCINDIA GUNA LOK SABHA SEAT: कांग्रेस ने बनाई महाराज की मुश्किलें बढ़ाने की रणनीति! जानिए क्या गुना में 2019 का इतिहास दोहरा पाएगी कांग्रेस

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JYOTIRADITYA SCINDIA GUNA LOK SABHA SEAT: कांग्रेस ने बनाई महाराज की मुश्किलें बढ़ाने की रणनीति! जानिए क्या गुना में 2019 का इतिहास दोहरा पाएगी कांग्रेस
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JYOTIRADITYA SCINDIA GUNA LOK SABHA SEAT: कांग्रेस ने बनाई महाराज की मुश्किलें बढ़ाने की रणनीति! जानिए क्या गुना में 2019 का इतिहास दोहरा पाएगी कांग्रेस। सिंधिया राजघराने के सभी प्रमुख व्यक्तियों ने जब-जब राजनीति में कदम रखा, वे हमेशा ही डेब्यू के लिए गुना को ही चुना। चाहे वह राजमाता विजयराजे सिंधिया हों, माधवराव सिंधिया हों, या फिर स्वयं केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया क्यों न हों? यह बस एक संयोग नहीं है। वास्तव में, 50 के दशक तक सिंधिया राजघराने को ‘समर कैपिटल’ कहा जाता था।

यहां के लोग आज भी सिंधिया राजघराने के वारिसों को महाराज या श्रीमंत कहकर ही संबोधित करते हैं। जब आप दिल्ली से निकलते हैं और मध्यप्रदेश के मालवा और चंबल क्षेत्र में जाना चाहते हैं, तो पहला अवस्थान गुना होगा। यहाँ जमीनी स्थिति की विशेषता का पता चलता है, लेकिन गुना को अहम बनाने वाली एक और बात है – जब सिंधिया राजघराने के सभी महत्वपूर्ण नाम चुनावी राजनीति में प्रवेश करते हैं, तो वे हमेशा गुना को चुनते हैं। चाहे वो राजमाता विजयराजे सिंधिया हों, माधवराव सिंधिया हों या फिर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, गुना ही क्यों न हो? यह एक संयोग नहीं है।

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दरअसल पचासों दशक तक सिंधिया राजघराने की ‘राजधानी’ गुना थी। यहाँ के लोग आज भी सिंधिया राजघराने के वारिसों को ‘महाराज’ या ‘श्रीमंत’ कहकर संबोधित करते हैं। यहाँ पर माना जाता है कि जहाँ भी ‘महल’ का व्यक्ति खड़ा हो, जिस पार्टी के साथ हो, वह वहाँ से जीतेगा। लेकिन 2019 में, कृष्णपाल सिंह यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को गुना से हरा दिया। ऐसे में, सवाल यह है कि क्यों हुई सिंधिया की हार? इसके साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि गुना की संसदीय सीट का चुनावी इतिहास क्या है।

सियासी प्रतिस्पर्धा के विषय में बहस करने से पहले, हमें यह जानना चाहिए कि गुना का इतिहास क्या है। वास्तव में, गुना का इतिहास सिंधिया वंश से जुड़ा हुआ है। इस राजवंश की उत्पत्ति का समय लगभग 1740 के आसपास है, जब राणो जी सिंधिया ने इसे स्थापित किया। वे मराठा योद्धा थे और सबसे पहले मालवा क्षेत्र में विजय प्राप्त की और उज्जैन को अपनी प्रथम राजधानी घोषित किया। उसके बाद, 1800 तक, शाजापुर से ग्वालियर में गये जाने के बाद सिंधिया परिवार की राजधानी ग्वालियर बन गई।

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इसके बाद से आज़ादी तक, ग्वालियर राजघराने के सिंधिया परिवार के शासन के तहत, शिवपुरी, शयोपुर और गुना क्षेत्र में बहुत सारी विकास हुई। पहले गुना क्षेत्र में शिवपुरी में कई हरियाली और झरने-तालाब थे, जो सिंधिया परिवार के लोग अपने गर्मियों के दिनों में आनंद लेते थे। (JYOTIRADITYA SCINDIA GUNA LOK SABHA SEAT) गुना शहर में सिंधिया शासन के तहत बहुत विकास हुआ, और 1897 में ही ट्रेन सेवा शुरू हुई, जिसे 1899 में राजस्थान के बिना तक ले जाया गया।

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