Bageshwar Dham Sarkar: बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने इटावा में कथावाचक के साथ हुए दुर्व्यवहार पर नाराजगी जताई। बोले – भगवान की कथा सबका अधिकार है, भारत को जातिवाद से ऊपर उठना होगा।
इटावा विवाद पर धीरेंद्र शास्त्री की तीखी प्रतिक्रिया
उत्तर प्रदेश के इटावा में 21 जून को एक कथावाचक के साथ अनुचित व्यवहार के मामले ने सनातन धर्म के अनुयायियों को आहत किया है। अब इस मुद्दे पर बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का भी कड़ा बयान सामने आया है। विदेश दौरे से लौटने के बाद उन्होंने एक वीडियो जारी कर घटना पर चिंता जताई।
“घटना विचलित करने वाली है”
धीरेंद्र शास्त्री ने कहा, “हम विदेश यात्रा पर थे, तब भारत में कई घटनाएं हुईं। लेकिन इटावा की घटना बहुत ही चौंकाने वाली थी। कथावाचक के साथ दुर्व्यवहार किया गया, जो कि पूरी तरह से निंदनीय है।”

“कथा सबका अधिकार, जाति नहीं ज्ञान जरूरी”
शास्त्री जी ने कहा कि भगवान की कथा सुनाना या उसका प्रचार करना किसी जाति विशेष का अधिकार नहीं है। उन्होंने वेदव्यास, वाल्मीकि, सूरदास, कबीर और मीराबाई जैसे संतों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये सभी एक ही रंग में रंगे हुए थे – ईश्वर भक्ति के। “भगवान का नाम लेने से बड़ा कोई धर्म नहीं होता, जाति पूछना ज्ञान से बड़ा नहीं हो सकता।”
“जातिवाद नहीं, राष्ट्रवाद चाहिए”
उन्होंने कहा, “अगर हम सच में भारत को एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं, तो हमें जात-पात से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में सोचना होगा। भगवान के भजन में कोई भेद नहीं होना चाहिए। मीराबाई से लेकर गुरुनानक देव तक ने ईश्वर की भक्ति की है – क्या उनका कोई धर्म या जाति पूछा गया?”
“कानून व्यवस्था को दें प्राथमिकता”
घटना पर कड़ी टिप्पणी करते हुए शास्त्री ने कहा, “अगर किसी ने अपराध किया भी है, तो फैसला न्याय व्यवस्था को करने दीजिए। खुद को न्यायाधीश बनाना ठीक नहीं। इससे सामाजिक विद्वेष और जातिगत राजनीति को बढ़ावा मिलता है।” उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग जाति के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, उन्हें जनता जवाब देगी।

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नवंबर में होगी पदयात्रा
पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने ऐलान किया कि वे 7 से 16 नवंबर तक दिल्ली से वृंदावन तक पैदल यात्रा करेंगे। इसका उद्देश्य है – भारत को जातिवाद से मुक्त करके एकजुट हिंदू समाज की दिशा में जागरूकता फैलाना।
Bageshwar Dham Sarkar: इटावा की घटना पर धीरेंद्र शास्त्री की प्रतिक्रिया न सिर्फ धर्म की रक्षा की बात करती है, बल्कि समाज को जात-पात से ऊपर उठकर एकजुट होने का संदेश भी देती है। उनका मानना है कि सनातन धर्म का प्रचार और भगवान की कथा किसी एक वर्ग का अधिकार नहीं, यह सभी का है।