Gender Neutral Policy: भारतीय रेलवे में महिला लोको पायलटों ने ड्यूटी के दौरान लैंगिक असमानता और मूलभूत सुविधाओं की कमी पर चिंता जताई है। जानें क्या है उनकी मांग और रेलवे बोर्ड की प्रतिक्रिया।
भारतीय रेलवे में लैंगिक समानता को लेकर फिर उठा सवाल
भारतीय रेलवे में कार्यरत महिला कर्मचारियों ने कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। देशभर में करीब 1 लाख महिला रेलवे कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें से 2000 से अधिक लोको पायलट हैं। इन महिला लोको पायलटों ने अपनी ड्यूटी में आने वाली चुनौतियों को लेकर जॉब प्रोफाइल बदलने की मांग तक कर दी है।
लोको पायलटों को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है?
महिला लोको पायलटों की यूनियन ने लंबे समय से यह मुद्दा उठाया है कि उन्हें ड्यूटी के दौरान न तो इंजन में शौचालय की सुविधा मिलती है और न ही रेलवे स्टेशनों या सिग्नल प्वाइंट्स के पास शौचालय उपलब्ध होते हैं। इसके साथ ही, वे मातृत्व अवकाश, शिशु देखभाल के लिए छुट्टी और ट्रिप के बाद मुख्यालय लौटने जैसी सुविधाएं भी मांग रही हैं।
इनका कहना है कि ऐसी मूलभूत आवश्यकताओं की अनदेखी उनके काम को और भी कठिन बना रही है। कई महिला कर्मचारी मानसिक और शारीरिक रूप से थक चुकी हैं और अब वह डेस्क जॉब या प्रशासनिक पद पर तैनाती चाहती हैं।

दो प्रमुख यूनियनों ने उठाई आवाज़
हाल ही में ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (AIRF) और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमें (NFIR) ने संयुक्त रूप से रेलवे बोर्ड के समक्ष महिला कर्मचारियों की शिकायत रखी। यूनियनों ने बताया कि महिला स्टाफ को कई स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनके लिए नौकरी करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है।
रेलवे इंजन में शौचालय की सुविधा नहीं होना एक गंभीर मुद्दा है। यही नहीं, कई रेलवे कार्यालयों में महिला कर्मचारियों के लिए अलग से वॉशरूम तक उपलब्ध नहीं हैं।
रेलवे बोर्ड की प्रतिक्रिया: सिर्फ औपचारिकता?
शिकायतों के बाद रेलवे बोर्ड ने देश के सभी 17 जोनल रेलवे और प्रोडक्शन यूनिट्स को एक कड़ा पत्र जारी किया। पत्र में कहा गया कि सभी इकाइयाँ Gender Neutral Policy का ईमानदारी से पालन सुनिश्चित करें और महिला कर्मचारियों की शिकायतों को प्राथमिकता दें।
हालांकि, महिला लोको पायलटों का मानना है कि यह पत्र सिर्फ एक औपचारिकता है। उनका कहना है कि ऐसी चिट्ठियां पहले भी आती रही हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस बदलाव नहीं होता। यही वजह है कि वे अब जॉब कैटेगरी में बदलाव की मांग कर रही हैं।

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महिला कर्मचारी चाहती हैं ठोस बदलाव
महिलाओं की प्रमुख मांगों में शामिल हैं:
- इंजन में शौचालय की व्यवस्था
- सिग्नल प्वाइंट्स पर शौचालय का निर्माण
- महिला स्टाफ के लिए अलग वॉशरूम की सुविधा
- मातृत्व और बाल देखभाल अवकाश की व्यवस्था
- मालगाड़ी में ड्यूटी के बाद मुख्यालय वापसी की अनिवार्यता
इन मांगों को पूरा करना रेलवे के लिए कोई मुश्किल कार्य नहीं है, लेकिन यदि इसे प्राथमिकता ना दी जाए, तो महिला कर्मचारियों का मनोबल टूट सकता है।
Gender Neutral Policy
महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की बातें नीतियों में भले ही हों, लेकिन जब तक उनका ठोस और ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन नहीं होगा, तब तक इस तरह की शिकायतें सामने आती रहेंगी। रेलवे बोर्ड को अब औपचारिक पत्रों से आगे बढ़कर व्यवहारिक समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है।