Comprehensive Trade Deal: क्या अमेरिका से टूट जाएगा भारत का व्यापारिक रिश्ता? आखिर चाहते क्या है ट्रंप

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Comprehensive Trade Deal: क्या अमेरिका से टूट जाएगा भारत का व्यापारिक रिश्ता? आखिर चाहते क्या है ट्रंप
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Comprehensive Trade Deal: भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से बहुप्रतीक्षित व्यापक व्यापार समझौता (Comprehensive Trade Deal) एक बार फिर अनिश्चितता के दौर में पहुंच गया है। लगातार बैठकों और वार्ताओं के बावजूद, अब तक कोई ठोस सहमति नहीं बन सकी है।

हाल ही में सामने आए सूत्रों के अनुसार, डील में सबसे बड़ी अड़चन टैरिफ यानी आयात शुल्क (Import Tariffs) को लेकर है। अमेरिका चाहता है कि 10 फीसदी टैरिफ को बरकरार रखा जाए, जबकि भारत का आग्रह है कि कई प्रमुख सेक्टर्स में इस शुल्क को शून्य (0%) कर दिया जाए।

तो आखिर टकराव की वजह क्या है? और इसका असर भारत और अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों पर कैसे पड़ेगा? आइए इस पूरे मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।


भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों की मौजूदा स्थिति

पिछले दो दशकों में भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है। 2023-24 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार $192 बिलियन डॉलर से अधिक तक पहुंच गया। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन चुका है।

भारत अमेरिका को प्रमुख रूप से औषधि उत्पाद, जेम्स और ज्वेलरी, कपड़ा, मशीनरी और IT सेवाएं निर्यात करता है, जबकि अमेरिका से एयरोस्पेस, मेडिकल डिवाइसेज, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि उत्पाद आयात करता है।

इतने घनिष्ठ संबंधों के बावजूद दोनों देशों के बीच एक समग्र और स्थायी ट्रेड एग्रीमेंट अब तक नहीं हो पाया है।

Comprehensive Trade Deal: क्या अमेरिका से टूट जाएगा भारत का व्यापारिक रिश्ता? आखिर चाहते क्या है ट्रंप

Comprehensive Trade Deal टैरिफ पर टकराव

🔴 भारत की मांग:

भारत चाहता है कि अमेरिका कुछ खास सेक्टर्स – जैसे कि टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक्स और फूड प्रोसेसिंग – में लगे 10% टैरिफ को खत्म (Zero Tariff) करे। भारत का तर्क है कि इससे उसके निर्यातकों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिलेगी और “मेक इन इंडिया” को बल मिलेगा।

🔵 अमेरिका का रुख:

वहीं अमेरिका इस 10 फीसदी टैरिफ को बनाए रखने का पक्षधर है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि टैरिफ से उन्हें घरेलू उद्योगों की रक्षा करने में मदद मिलती है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक स्तर पर व्यापारिक अनिश्चितता बनी हुई है।


किन सेक्टर्स में हो रही है खींचतान?

  1. इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्नोलॉजी उत्पाद:
    अमेरिका चाहता है कि भारत आयात शुल्क कम करे, जिससे Apple, HP और Dell जैसी कंपनियों को भारतीय बाजार में पैर जमाने में आसानी हो।
  2. कृषि और डेयरी सेक्टर:
    भारत अपनी कृषि और डेयरी इंडस्ट्री को सुरक्षा देना चाहता है, जबकि अमेरिका चाहता है कि उसके कृषि उत्पादों को भारत में अधिक पहुंच मिले। यही मुद्दा वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) में भी बार-बार उठता रहा है।
  3. ई-कॉमर्स और डेटा लोकलाइजेशन:
    भारत की डेटा सुरक्षा नीति के तहत विदेशी कंपनियों को डेटा भारत में स्टोर करना होगा। इससे Amazon, Google और Facebook जैसी अमेरिकी कंपनियां असहमत हैं।
Comprehensive Trade Deal: क्या अमेरिका से टूट जाएगा भारत का व्यापारिक रिश्ता? आखिर चाहते क्या है ट्रंप

क्या है भारत का पक्ष?

भारत का मानना है कि टैरिफ घटाने से पहले अमेरिका को वीजा नीति, टेक ट्रांसफर, और फाइनेंशियल एक्सेस जैसे मुद्दों पर भी लचीलापन दिखाना चाहिए। इसके अलावा भारत यह भी चाहता है कि अमेरिका जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (GSP) की बहाली करे, जिसे 2019 में खत्म कर दिया गया था।


अमेरिका की रणनीति: चीन प्लस वन

अमेरिका की व्यापार नीति में अब चाइना प्लस वन” मॉडल पर फोकस है, जिसमें भारत को वैकल्पिक उत्पादन केंद्र के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन अगर भारत और अमेरिका टैरिफ जैसे मसलों पर एकमत नहीं हो पाते, तो अमेरिका वियतनाम, थाईलैंड या बांग्लादेश जैसे देशों की ओर रुख कर सकता है।


ट्रेड डील रुकने से किसे होगा ज्यादा नुकसान?

  • भारत के लिए नुकसान:
    • निर्यातकों को अमेरिकी बाज़ार में प्रतिस्पर्धा में मुश्किल।
    • FDI (विदेशी निवेश) को बढ़ावा देने में रुकावट।
    • Make in India की गति धीमी पड़ सकती है।
  • अमेरिका के लिए नुकसान:
    • भारत जैसे बड़े मार्केट में प्रवेश बाधित।
    • चीन पर निर्भरता खत्म करने की योजना धीमी।
    • उभरती टेक और फार्मा इंडस्ट्री से जुड़ने का मौका छूट सकता है।

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विशेषज्ञों की राय क्या कहती है?

वाणिज्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस डील में देरी का मतलब यह नहीं कि बातचीत खत्म हो गई है। दोनों देशों को “Give and Take” नीति अपनानी होगी।

डॉ. अरविंद पांडे, अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ कहते हैं,
भारत को अपने हितों की रक्षा करते हुए कुछ सेक्टर्स में रियायत देनी होगी। वहीं अमेरिका को भी यह समझना होगा कि भारत एक उभरती अर्थव्यवस्था है और उसकी प्राथमिकताएं अलग हैं।”


भविष्य की संभावनाएं: क्या डील अब भी संभव है?

✔️ हां, डील पूरी तरह से असंभव नहीं है।
✔️ दोनों देश रणनीतिक सहयोग को प्राथमिकता देते हैं — चाहे वह QUAD हो, रक्षा समझौते हों, या टेक्नोलॉजी साझेदारी।
✔️ 2025 की दूसरी छमाही में दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय वार्ता होने की उम्मीद है, जिसमें इस मुद्दे पर नया समाधान निकल सकता है।


Comprehensive Trade Deal

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक डील की राह में कई पेच हैं, लेकिन यह असंभव नहीं है। दोनों देशों के पास एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की बड़ी संभावनाएं हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि ट्रेड-ऑफ कहां और किस स्तर पर किया जाए, इस पर सहमति बननी बाकी है।

अभी के लिए, टैरिफ को लेकर खींचतान इस डील की सबसे बड़ी रुकावट बनी हुई है, लेकिन भविष्य में परिस्थितियां बदल सकती हैं।

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