Bhagwan Jagannath Rath Yatra: पुरी की रथ यात्रा ही नहीं, हर कण में बसते हैं जगन्नाथ! जानिए उनकी दिव्य लीलाओं और जीवन से जुड़ी अद्भुत बातें। भारत एक आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं से समृद्ध देश है, जहाँ हर देवी-देवता की पूजा अनूठे तरीके से होती है। इन सभी में भगवान जगन्नाथ की महिमा सबसे विशेष और रहस्यमयी मानी जाती है।
कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ हर कण-कण में व्याप्त हैं, केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि हर जीव में, हर पदार्थ में उनका अंश है। यही भाव “कण-कण में करिए जगन्नाथ प्रभु के दर्शन” में झलकता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि भगवान जगन्नाथ कौन हैं, उनका दर्शन क्यों खास है, पुरी की रथ यात्रा का महत्व क्या है, और कैसे आप अपने जीवन में भी प्रभु जगन्नाथ के भाव को अनुभव कर सकते हैं।
भगवान जगन्नाथ कौन हैं?
भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण का ही रूप माना जाता है। “जगन्नाथ” शब्द का अर्थ है “जगत के स्वामी”। वे विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के रूप में पूजे जाते हैं, जो अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ पुरी (ओडिशा) के मंदिर में विराजमान हैं।
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति काले रंग की होती है, जिसमें बड़ी-बड़ी गोल आंखें, बिना हाथ-पैर के शरीर और अनोखा चेहरा होता है। यह रूप भक्तों को दर्शाता है कि प्रभु की भक्ति रूप-रंग की मोहताज नहीं होती, बल्कि भावना और श्रद्धा से ही प्रभु प्राप्त होते हैं।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पवित्र अवसर पर सभी देशवासियों को मेरी ढेरों शुभकामनाएं। श्रद्धा और भक्ति का यह पावन उत्सव हर किसी के जीवन में सुख, समृद्धि, सौभाग्य और उत्तम स्वास्थ्य लेकर आए, यही कामना है। जय जगन्नाथ! pic.twitter.com/vj8K6a0XKM
— Narendra Modi (@narendramodi) June 27, 2025
पुरी का श्रीजगन्नाथ मंदिर
ओडिशा के पुरी में स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक है। यह मंदिर 12वीं शताब्दी में बना और आज भी यह भक्तों के लिए एक अत्यंत पवित्र स्थल है।
यहाँ भगवान की पूजा लकड़ी से बनी मूर्तियों के रूप में होती है, जो हर 12-19 साल में ‘नवकलेवर’ परंपरा के अंतर्गत बदली जाती हैं। यह परंपरा दुनिया में कहीं और नहीं देखी जाती।
रथ यात्रा: प्रभु का संसार भ्रमण
पुरी की रथ यात्रा, जो हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकलती है, पूरे भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध है। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ भव्य रथों में बैठकर गुंडिचा मंदिर तक जाते हैं।
यह यात्रा बताती है कि भगवान स्वयं भक्तों के द्वार आते हैं, और यह भाव यही दिखाता है कि भगवान जगन्नाथ कण-कण में व्याप्त हैं — वे सीमित नहीं हैं मंदिर की चार दीवारों में।
कण-कण में कैसे अनुभव करें प्रभु का दर्शन?
- भक्ति और सेवा में
भगवान जगन्नाथ की सबसे बड़ी विशेषता है उनकी सर्वसमावेशी दृष्टि। वे ऊँच-नीच, जाति-पाति, अमीर-गरीब नहीं देखते। जो भी सच्चे मन से उन्हें याद करता है, वे उसे स्वीकार करते हैं। अतः जब हम किसी की सेवा करते हैं, प्रेम से व्यवहार करते हैं, वहीं प्रभु के दर्शन होते हैं। - प्रकृति में
सूर्य की रोशनी, हवा की ठंडक, बारिश की बूंदें, हर पेड़-पौधे में प्रभु का अंश है। जब हम इन सबमें सौंदर्य और शक्ति देखते हैं, तो वास्तव में हम जगन्नाथ के अंश को ही देख रहे होते हैं। - मानवता में
“वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना से जब हम सबको एक मानते हैं, बिना भेदभाव के व्यवहार करते हैं, तब हम हर मनुष्य में प्रभु को देखते हैं। यही असली दर्शन है।

जगन्नाथ प्रभु की खास बातें
- अद्भुत रूप: बिना हाथ-पैर के मूर्तियों के रूप में उनकी पूजा, हमें सिखाती है कि भगवान का रूप नहीं, उनकी महिमा और अनुभूति ज़रूरी है।
- महा-प्रसाद: पुरी मंदिर का महाप्रसाद भक्तों में अत्यंत श्रद्धा से बांटा जाता है। कहा जाता है कि यह भोजन स्वयं माँ लक्ष्मी बनाती हैं।
- सबके भगवान: पुरी का मंदिर एकमात्र ऐसा बड़ा मंदिर है जहाँ सभी जातियों के लोग, यहां तक कि विदेशी भी, रथ यात्रा में हिस्सा ले सकते हैं।
जीवन में भगवान जगन्नाथ को उतारने के उपाय
- हर दिन थोड़ी देर प्रभु का नाम जपें
– “जय जगन्नाथ” या “हरे कृष्ण हरे राम” जैसे मंत्रों का जाप करें। - किसी ज़रूरतमंद की मदद करें
– सेवा को ही प्रभु का सच्चा रूप मानें। - प्रकृति का आदर करें
– पेड़ लगाएँ, जल की रक्षा करें, क्योंकि इनमें भी प्रभु हैं। - सच्चे भाव से काम करें
– हर कार्य को भगवान को अर्पित मानकर करें।
Bhagwan Jagannath Rath Yatra
“कण-कण में करिए जगन्नाथ प्रभु के दर्शन” कोई सिर्फ कहावत नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। जब हम हर जीव, हर परिस्थिति और हर अनुभव में प्रभु की उपस्थिति को महसूस करना सीख जाते हैं, तब हमारा जीवन स्वयं एक यात्रा बन जाता है – जगन्नाथ के रथ जैसी – जो हमें आत्मज्ञान और शांति की ओर ले जाती है।
इस लेख के माध्यम से हमने प्रयास किया है कि आप प्रभु को केवल मूर्ति में नहीं, बल्कि अपने जीवन के हर हिस्से में देख सकें।
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“जय जगन्नाथ!”