बाबाओं के पंडाल से तय होंगे मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे, जानिए BJP और कांग्रेस के सियासी समीकरण

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BJP-Congress-Baba Bageshwar-Pradeep Mishra: बाबाओं के पंडाल से तय होंगे मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे, जानिए BJP और कांग्रेस के सियासी समीकरण। इस वर्ष राजस्थान, मध्यप्रदेश समेत देश के कुल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले है। जिसे लेकर सभी पार्टियां पूरा जोर लगाने में जुटी हुई है। लेकिन चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में अलग ही धर्म की राजनीति देखने को मिल रही है। जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे है बाबाओं और राजनेता के बीच रिश्ता गहरा होता जा रहा है।

मध्यप्रदेश में शुरू हुई धर्म की राजनीति

खासतौर पर BJP को हराने और प्रदेश की सत्ता में वापसी करने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा लेने को मजबूर मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेता विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने से पहले ही बाबाओं और साधू संतों की चौखट पर सिर झुकाते नजर आ रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कंप्यूटर बाबा गूगल बाबा का खासा दबदबा देखने को मिला था, तो वहीं इस बार बागेश्वर धाम के महंत पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री और सीहोर वाले गुरु जी के नाम से मशहूर पंडित प्रदीप मिश्रा की पकड़ पूरे मध्यप्रदेश में हैं। इस लिस्ट में पंडोखर सरकार, जया किशोरी, रावतपुरा सरकार संत रविशंकर और कमल किशोर नागर का नाम भी शामिल है।

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BJP-कांग्रेस के नेताओं द्वारा बाबाओं को समर्थन देने का प्रयास

इनके पंडाल में भी BJP-कांग्रेस हर नेता अपने चुनावी क्षेत्र में सजा रहा है। हालही में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने गढ़ छिंदवाड़ा में हिंदू राष्ट्र समर्थक पंडित धीरेंद्र शास्त्री की कथा का आयोजन करवाया और अब इसके बाद पंडित प्रदीप मिश्रा की शिव महापुराण कथा का आयोजन किया जा रहा है। मध्य प्रदेश में इस साल के आखिरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और इससे पहले दोनों प्रमुख पार्टियों के नेताएँ बाबाओं के साथ जुट गए हैं। राघौगढ़ में भी एक कथा का आयोजन किया गया था, जिसमें पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह बागेश्वर बाबा की मेजबानी की गई।

कमलनाथ से लेकर BJP तक सब की नजर धर्मगुरु पर

रिपोर्ट्स के मुताबिक, जयवर्धन सिंह छतरपुर से अपनी पार्टी के विधायक आलोक चतुर्वेदी के माध्यम से धीरेंद्र शास्त्री के साथ एक साथ आ रहे हैं। इससे सुझाव दिया जा रहा है कि शास्त्री को धर्मगुरु के रूप में प्रस्तुत करने के लिए उनका हाथ भी है।बीजेपी भी बाबाओं के साथ सजीव रूप से जुड़ी हुई है, और हाल ही में मंत्री विश्वास सारंग ने अपने विधानसभा क्षेत्र नरेला में पंडित प्रदीप मिश्रा (रुद्राक्ष वाले बाबा) के आयोजन की थी। उन्होंने पूरे नरेला क्षेत्र में प्रदीप मिश्रा के साथ भव्य शोभा यात्रा भी निकाली थी। पूर्व सीएम कमलनाथ ने भी प्रदीप मिश्रा के कार्यक्रम का समर्थन किया है।

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युवाओं की पसंद कौन राजनेता या धीरेन्द्र शास्त्री

कथा वाचक जया किशोरी, बाबा बागेश्वर और प्रदीप मिश्रा के पास बड़ी संख्या में युवाओं का समर्थन है। इसके कारण, बीजेपी और कांग्रेस के नेताएँ भी उन्हें अपने कार्यक्रमों में शामिल कर रहे हैं। वोट दिलाने में बाबाओं का कितना महत्व है, यह बात देखने के लिए है कि क्या यह असल में फलित हो सकता है। राजेश पांडेय के अनुसार, ‘मध्य प्रदेश में बाबाओं का वोट देने की क्षमता है या नहीं, यह हमें पता नहीं है, लेकिन वे बड़े स्तर पर माहौल बना देते हैं।

यह रणनीति कितनी हद तक सही ?

यह गलत है कि बाबाओं ने किसी नेता को हराने की घोषणा की है, लेकिन फिर भी लोग उनकी सुनते हैं। एक बार जब रावतपुरा सरकार ने गोविंद सिंह को चुनाव हारने की घोषणा की थी, तो भी वे जीत गए थे। राजनैतिक जानकारों के अनुसार इस बार के चुनावी परिप्रेक्ष्य में यह बता रहे हैं कि धर्म ने इस राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका मुख्य कारण बीजेपी है। BJP ने राम मंदिर को अपने मुख्य एजेंडा के रूप में उठाया है और उत्तरी राज्यों में धर्म से संबंधित राजनीति को महत्वपूर्ण बनाया है, जिसकी शुरुआत बीजेपी ने की है। इसके परिणामस्वरूप, अधिकांश साधु महात्मा इसी पार्टी के साथ जुड़े हैं।

बाबाओं की चौखट पर क्यों खड़ी कांग्रेस ?

कांग्रेस का यह चर्चा क्यों हो रहा है कि वे अब बाबाओं के समर्थन के लिए क्यों जा रहे हैं? बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन के माध्यम से हिंदू वोटरों को अपने पक्ष में किया है, लेकिन कांग्रेस का यह कदम सभी को आश्चर्यचकित कर रहा है। सियासी पंडितों के अनुसार बीजेपी और कांग्रेस दोनों समाज के अनुसार काम कर रहे हैं, और कांग्रेस के नेता भी उसी धर्म को मानते हैं जिसे बीजेपी के नेता मानते हैं। यह गलत है कि कांग्रेस अब ही बाबाओं से समर्थन मांग रही है, क्योंकि इसका प्रमुख उदाहरण 1980 के दशक में आपके साथ हो सकता है,

जब बाबा पवन दीवान को कांग्रेस ने सांसद बनाया था, और दिग्विजय सिंह भी अपने कार्यकाल में बाबाओं के साथ रहते थे। पांडेय यह भी कहते हैं कि कांग्रेस दिल्ली में रहने वाले नेताओं के लिए दूर है, लेकिन मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में, जिनमें अल्पसंख्यकों की जनसंख्या कम है, पार्टियां बहुसंख्यकों के साथ मिलकर चलती हैं, और राजनीति और धर्म हमेशा से साथ चले आए हैं।

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