Krishna Janmashtami: 2 दिन क्यों मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी ? जानिए स्मार्त व वैष्णव जन्मोत्सव में अंतर  

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Krishna Janmashtami: 2 दिन क्यों मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी ? जानिए स्मार्त व वैष्णव जन्मोत्सव में अंतर। श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव, जिसे हम जन्माष्टमी के नाम से भी जानते हैं, हिन्दू धर्म के एक महत्वपूर्ण त्योहार में से एक है। यह त्योहार हर साल भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी के साथ मनाया जाता है, और यह भारतीय संस्कृति में गहरी धार्मिक और सामाजिक महत्व रखता है। यह पर्व हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की आष्टमी को मनाया जाता है, जिसे हम जन्माष्टमी के नाम से जानते हैं।

कब है कृष्ण जन्माष्टमी 2 की तिथियां ?

इसे स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के अनुसार दो अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है, और यहां हम इस विषय पर विचार करेंगे कि इसके पीछे का अर्थ क्या है और दो संप्रदायों के बीच क्यों होता है इसमें अंतर। इस बार भी Krishna Janmashtami दो दिन मनाई जाएगी। बुधवार यानी 06 सितंबर को, जबकि वैष्णव संप्रदाय के मंदिरों में गुरुवार यानी 7 सितंबर को पूरे धूम धाम से भगवान कृष्ण का जन्म दिवस मनाया जाएगा। कहा जाता है की स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय अलग-अलग तिथि होने पर अलग-अलग दिन जन्माष्टमी मनाते हैं।

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स्मार्त Krishna Janmashtami कौन मनाता है ?

वर्षों से जन्माष्टमी की पहली तिथि पर स्मार्त संप्रदाय और दूसरी तिथि को वैष्णव संप्रदाय जन्माष्टमी मनाते हैं। अब जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म दिवस अलग अलग दिन क्यों मनाया जाता है। स्मार्त सम्प्रदाय के अनुसार, श्रीकृष्ण के जन्मदिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाना यह मान्यता है कि श्रीकृष्ण के अलावा भगवान विष्णु के दस अवतार होते हैं, और श्रीकृष्ण उनमें से एक हैं। इसलिए, उनके जन्मदिन को मनाने का महत्व अत्यधिक होता है। स्मार्त सम्प्रदाय के अनुयायी इस दिन विशेष पूजा और भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं।

उनके जन्म की घड़ी पर अक्षय पात्र में दही, मिश्री, घी, और फल रखकर श्रीकृष्ण का जन्म आराधना करते हैं। जन्माष्टमी के दिन एक छोटे से बच्चे को श्रीकृष्ण के रूप में बच्चा बनाकर उसके साथ खेलने का आयोजन भी किया जाता है। इसके बाद, Krishna Janmashtami की रात को भगवान की मुर्ति का जन्म आराधना करते हुए रात के शुभ महूर्त में उनके जन्म का आयोजन किया जाता है, जिसे “निशिथ जागरण” कहा जाता है। जन्माष्टमी की रात को मनाने के बाद, भक्त एक नये जीवन का संकल्प लेते हैं और अपने जीवन में भगवान की भक्ति को बढ़ावा देते हैं।

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कौन मनाता है वैष्णव जन्माष्टमी ?

वैष्णव सम्प्रदाय के अनुसार, श्रीकृष्ण के जन्मदिन का महत्व भी अत्यधिक होता है, लेकिन उनके जन्म के बगैर उनके भक्ति का आयोजन नहीं किया जाता है। वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी इस दिन को श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाने के बजाय, उनके जीवन और लीलाओं की महत्वपूर्ण कथाओं का सुनाने और पढ़ने में विशेष रुचि रखते हैं। वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी श्रीकृष्ण को भगवान के रूप में मानते हैं और उनके जीवन की गहरी भक्ति में रंगी हुई होते हैं। उनके लिए Krishna Janmashtami का दिन भगवान के साथ गहरी भक्ति में व्यतीत करने का एक अद्वितीय अवसर होता है।

चाहे स्मार्त सम्प्रदाय हो या वैष्णव सम्प्रदाय, जन्माष्टमी का महत्व भक्ति और साधना में होता है। इस दिन भगवान के साथ गहरी संवाद करने और उनकी आराधना करने का अद्वितीय अवसर होता है। इसे एक धार्मिक त्योहार के रूप में मनाने के साथ-साथ, जन्माष्टमी के दिन भक्तों के बीच सोशल और कल्चरल आयोजन भी किए जाते हैं। भजन-कीर्तन, नृत्य, और दर्शनिय रंगमंच प्रस्तुतियां भगवान की जीवनी से संबंधित होती हैं और लोगों को भक्ति और आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित करती हैं। इसके अलावा, जन्माष्टमी के दिन बालकृष्ण के भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े कई कथाएं और संस्कृति के महत्वपूर्ण संदेशों को याद किया जाता है।

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