बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला! विपक्ष की उम्मीदों को झटका!

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बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला! विपक्ष की उम्मीदों को झटका!
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वोटर लिस्ट घोटाले, SIR: चुनाव से पहले बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग ठुकराई। बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों से पहले देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। विपक्षी दलों को उस समय बड़ा झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट संशोधन प्रक्रिया (SIR) को रोकने से साफ इनकार कर दिया।

राजद सांसद मनोज झा और गैर-सरकारी संस्था ADR सहित कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर, चुनाव आयोग की प्रक्रिया को संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन बताया था। हालांकि, अदालत ने इस पर फिलहाल कोई अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है।


🔎 मामला क्या है वोटर लिस्ट घोटाले का ?

बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, मतदाता सूची का संशोधन (Summary Revision of Electoral Rolls – SIR) जोरशोर से चल रहा है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ है और इसका इस्तेमाल मतदाता सूची में हेरफेर के लिए किया जा सकता है।

राजद नेता मनोज झा, ADR और अन्य याचिकाकर्ताओं ने अदालत में कहा कि इस प्रक्रिया से बहुत से वैध मतदाताओं के नाम काटे जा सकते हैं या गैरकानूनी रूप से नए नाम जोड़े जा सकते हैं, जो चुनाव की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला! विपक्ष की उम्मीदों को झटका!

⚖️ याचिकाकर्ताओं का तर्क क्या था?

याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में बताया कि चुनाव आयोग द्वारा चलाया जा रहा SIR अभियान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन का अधिकार), 325 और 326 (चुनाव में भागीदारी का अधिकार) का सीधा उल्लंघन करता है।

इसके अलावा उन्होंने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और Electors Rules 1960 के नियम 21A का हवाला देते हुए बताया कि इस संशोधन प्रक्रिया में कानूनी प्रावधानों की अनदेखी हो रही है। याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट इस संशोधन प्रक्रिया पर रोक लगाए और एक पारदर्शी प्रणाली लागू करने के आदेश दे।


🧑‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह फिलहाल मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया पर रोक लगाने के पक्ष में नहीं है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए बिंदु गंभीर हैं, लेकिन इस स्तर पर किसी तरह की रोक लगाना उचित नहीं होगा

सुप्रीम कोर्ट का यह भी मानना है कि चुनाव आयोग द्वारा की जा रही यह प्रक्रिया कानून के दायरे में है, और जब तक किसी अनियमितता के स्पष्ट सबूत सामने नहीं आते, निर्वाचन आयोग के काम में हस्तक्षेप करना संभव नहीं है


🗂️ चुनाव आयोग का पक्ष

निर्वाचन आयोग का कहना है कि मतदाता सूची को अपडेट करना एक नियमित प्रक्रिया है जो हर चुनाव से पहले की जाती है। आयोग ने स्पष्ट किया कि सभी संशोधन कानून के अनुसार, जनहित में और पारदर्शी तरीके से किए जा रहे हैं।

इसके अलावा आयोग ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति को यदि आपत्ति हो, तो वे तय प्रक्रिया के तहत शिकायत दर्ज करा सकते हैं और उसे हल करने का अवसर दिया जाएगा।

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🧠 राजनीतिक विश्लेषण

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आने वाले विधानसभा चुनावों में बड़े राजनीतिक असर डाल सकता है। विपक्षी दलों को इससे निराशा हुई है, जबकि सत्तारूढ़ दलों को राहत मिली है। इससे चुनाव आयोग को भी अपनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का कानूनी आधार मिल गया है।

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि विपक्षी दल अब जनता के बीच जाकर इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन कानूनी रूप से उनके पास अब ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं।


📌 आगे क्या हो सकता है?

फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम फैसला नहीं सुनाया है। अदालत ने कहा है कि वह इस मामले में आगे सुनवाई करेगी, लेकिन तब तक के लिए कोई भी अंतरिम रोक नहीं लगाई जाएगी। इसका मतलब है कि चुनाव आयोग अपनी प्रक्रिया को निर्बाध रूप से जारी रख सकता है।

याचिकाकर्ताओं के पास अब यह विकल्प है कि वे इस मुद्दे को व्यापक स्तर पर साबित करें, ताकि अदालत उन्हें अंतिम सुनवाई में राहत दे सके। लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया होगी।


📊 SIR में किसकी होगी जीत ?

बिहार चुनाव से पहले यह मुद्दा एक बड़ा राजनीतिक और कानूनी विवाद बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह संकेत देता है कि वह चुनाव आयोग की स्वायत्तता और प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से बचना चाहती है, जब तक कि कोई ठोस प्रमाण न हो।

इस फैसले से जहां एक ओर चुनाव आयोग को राहत मिली है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण परिस्थिति बन गई है। अब देखना होगा कि आगे की कानूनी लड़ाई और चुनावी रणनीति किस दिशा में जाती है।

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