13 SAAL महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर गरमाई हुई है। जहां एक ओर बीएमसी चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर दो दशकों से अलग राह पर चल रहे ठाकरे बंधु – राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे – अब साथ दिखाई देने लगे हैं। 13 साल बाद राज ठाकरे, उद्धव ठाकरे के मुंबई स्थित निवास ‘मातोश्री’ पहुंचे, जिससे सियासी हलचल तेज हो गई है।

🔹 आखिर क्यों पहुंचे राज ठाकरे ‘मातोश्री’?
राज ठाकरे इस बार ‘मातोश्री’ किसी राजनीतिक मकसद से नहीं, बल्कि पारिवारिक कारण से पहुंचे। दरअसल, उद्धव ठाकरे का जन्मदिन था और उन्हें बधाई देने राज वहां पहुंचे। ये पहली बार था जब साल 2012 के बाद राज ठाकरे इस ऐतिहासिक घर में कदम रख रहे थे। 2012 में आखिरी बार वे तब पहुंचे थे जब शिवसेना सुप्रीमो और उनके चाचा बालासाहेब ठाकरे का निधन हुआ था।
🔹 किसने दिया साथ?
राज ठाकरे अकेले नहीं पहुंचे थे। उनके साथ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के वरिष्ठ नेता बाला नंदगांवकर और नितिन सरदेसाई भी मौजूद थे। सभी ने उद्धव को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं और एक साथ बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर के सामने फोटो भी खिंचवाई।
इस मुलाकात की एक तस्वीर सामने आई है, जिसने सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक चर्चाएं छेड़ दी हैं। हालांकि, एक वीडियो में जहां उद्धव ठाकरे परिवार के साथ केक काटते दिखे, उसमें राज ठाकरे नजर नहीं आए।
🔹 क्या फिर से एक होंगे ठाकरे बंधु?
यह सवाल अब सभी के मन में है। क्या राज और उद्धव ठाकरे फिर से साथ आएंगे? क्या शिवसेना और मनसे मिलकर आने वाले बीएमसी चुनाव लड़ेंगे?
हाल ही में हुई ‘मराठी विजय रैली’ के मंच पर दोनों नेताओं ने एक साथ उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस रैली में न सिर्फ एकजुटता दिखाई दी, बल्कि दोनों नेताओं ने मिलकर फडणवीस सरकार पर तीखे प्रहार भी किए।
राज ठाकरे ने इस मंच से कहा कि जो काम उनके चाचा बालासाहेब ठाकरे नहीं कर पाए, वो देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया – यानी ठाकरे परिवार को बांट दिया। ये बयान अपने आप में बहुत कुछ कहता है।
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🔹 सियासत में बदलते समीकरण
बता दें कि महाराष्ट्र की राजनीति में रिश्ते और समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। पहले जहां राज और उद्धव दो ध्रुवों पर खड़े दिखते थे, अब उनमें मेल के संकेत मिलने लगे हैं।
शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत पहले ही कह चुके हैं कि राज्य की जनता चाहती है कि ठाकरे बंधु साथ आएं और एकजुट होकर चुनाव लड़ें। उन्होंने इशारा दिया था कि अगर यह गठबंधन होता है, तो यह बीजेपी और एकनाथ शिंदे गुट के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
🔹 बीएमसी चुनाव: असली परीक्षा
मुंबई महानगरपालिका (BMC) का चुनाव महाराष्ट्र की राजनीति में बहुत महत्व रखता है। शिवसेना पिछले कई दशकों से यहां अपनी पकड़ बनाए हुए है। लेकिन इस बार बीजेपी भी इस चुनाव को जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रही है।
ऐसे में यदि राज ठाकरे की मनसे और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) एक साथ आते हैं, तो यह चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल सकता है। खासकर मराठी वोटर्स को एकजुट करने की रणनीति पर जोर दिया जा सकता है।
🔹 पारिवारिक रिश्ता या सियासी चाल?
इस मुलाकात को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों की अलग-अलग राय है। कुछ इसे सिर्फ एक पारिवारिक मिलन मानते हैं, जबकि कुछ इसे चुनाव पूर्व राजनीतिक बिसात का हिस्सा बता रहे हैं।
सच क्या है, ये आने वाले दिनों में साफ होगा। लेकिन एक बात तय है – 13 साल बाद राज ठाकरे का ‘मातोश्री’ लौटना सिर्फ एक निजी मुलाकात नहीं हो सकती।
🔹 बालासाहेब की तस्वीर के सामने तस्वीर – एक बड़ा संकेत?
राज और उद्धव ठाकरे ने जिस तस्वीर के सामने फोटो खिंचवाई, वह थी शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की। यह तस्वीर दोनों भाइयों के उस साझा अतीत की याद दिलाती है, जब दोनों एक ही मंच से महाराष्ट्र की राजनीति को दिशा दे रहे थे।
अब यही तस्वीर भविष्य की राजनीति का रास्ता भी तय कर सकती है।

13 साल बाद राज ठाकरे की ‘मातोश्री’ वापसी
राज ठाकरे की मातोश्री यात्रा से महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू होता नजर आ रहा है। भले ही यह मुलाकात अभी केवल पारिवारिक स्तर पर हुई हो, लेकिन इसके राजनीतिक मायने बहुत बड़े हो सकते हैं।
बीएमसी चुनाव, ठाकरे बंधुओं की एकता, और बीजेपी-शिंदे गुट की रणनीतियों के बीच महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर तेजी से बदल रही है।
आगामी हफ्तों में यह साफ हो जाएगा कि क्या यह एक ‘इमोशनल’ मुलाकात थी या ‘पॉलिटिकल’ गठजोड़ की शुरुआत।